(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 29 August 2020
वोल्बाचिया (Wolbochia) बैक्टीरिया चर्चा में क्यों
- डेंगू बुखार एक तीव्र बुखार है जो सही उपचार न किये जाने पर मौत का कारण बन जाता है।
- डेंगू बुखार डेंगू वायरस की वजह से होता है। यह वायरस एडीज एजिप्टी प्रजाति के मादा मच्छरों के माध्यम से इंसानों में पहुँचता हैं।
- डेंगू वायरस के चार प्रकार होते हैं जो एडीज एजिप्टी मच्छर के स्लाइवा में मौजूद होते हैं। जब यह मच्छर इंसानों को काटता है तो मच्छर के स्लाइवा से यह वायरस इंसानों के खून में पहुँच जाता है। इसके बाद यह वायरस अपना विकास कर मौत तक का कारण बन जाता है।
- इस वायरस से संक्रमित होने पर इंसान बुखार, सिरदर्द, शरीर पर चेचक जैसे चकत्ते पड़ जाते हैं, मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द होता है।
- इसे हड्डीतोड़ बुखार के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि कि हड़िडयों में इस प्रकार की टूटन या दर्द होता है जैसे हड्डियाँ टूट गई हों।
- डेंगू से प्लेटलेट्स (जिसके कारण रक्त जमता है) की संख्या तेजी से कम होती है जिसके कारण मौत भी हो जाती है।
- डेंगू वायरस से बचने के लिए कोई वैक्सीन नहीं है इसीकारण इससे बचाव के उपाय महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इस बीमारी ने विश्वव्यापी रूप धारण किया और आज इसका प्रसार लगभग 110 देशों में आम है।
- प्रत्येक वर्ष 50-100 मिलियन लोग डेंगू बुखार से पीड़ित होते हैं।
- WHO (World Health Organisation) के अनुसार हाल के समय में डेंगू के मामले बढ़े हैं।
- WHO के ही अनुसार विश्वभर में प्रतिवर्ष डेंगू संक्रमण के लगभग 39 करोड़ मामले देखे जाते हैं जिनमें से सिर्फ 9.6 करोड़ मामलों में डेंगू के लक्षण स्पष्ट होते हैं।
- भारत में वर्ष 2018 में डेंगू के 1 लाख से अधिक मामले दर्ज किये गये, जिनकी संख्या 2019 में बढ़कर 1.5 लाख हो गई।
- इसी बीमारी को नियंत्रित करने के लिए अनेक प्रकार के शोध कार्य किये जा रहे हैं।
- वैज्ञानिकों का एक समूह लंबे समय से डेंगू से निपटने का प्रयास कर रहा है। इसी के तहत वर्ल्ड मॉस्क्विटो प्रोग्राम (WMP) के तहत अनेक देश काम कर रहे हैं।
- इन्हीं प्रयासों के तहत यह शोध सामने आया कि यदि एडीज एजिप्टी मच्छर वोल्बाचिया (Wolbachia) नामक बैक्टीरिया से संक्रमित हो जाते है तो एडिज मच्छर के अंदर से डेंगू वायरस का प्रभाव समाप्त हो जाता है। अर्थात एडीज एजिप्टी के काटने पर भी डेंगू नहीं होगा, क्योंकि उसमें डेंगू वायरस नहीं होगा।
- वर्ष 2008 में ऑस्ट्रेलिया के एक अनुसंधान समूह ने WMPके तहत एडीज प्रजाति के मच्छरों में वोल्बाचिया बैक्टीरिया की भूमिका पर शोध किया गया, जिसमें यह पता चला कि यदि यह मच्छर वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित हों तो ये डेंगू फैलाने में सक्षम नहीं होते हैं।
- मच्छरों में इस बैक्टीरिया की उपस्थिति होने पर डेंगू के विषाणुओं को अपनी प्रतिकृति तैयार करने में कठिनाई होती है।
- बैक्टीरिया से संक्रमित कराकर वर्ष 2011 में ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड इलाके में इन मच्छरों को लोगों के बीच छोड़ा गया। कुछ समय बाद यह देखा गया कि डेंगू के संक्रमण में भारी कमी आई है।
- वर्ष 2016 में इसी प्रकार का शोध इंडोनेशिया में किया गया।
- वोल्बाचिया एक प्रकार का इंट्रासेल्युलर बैक्टीरिया है जो मुख्य रूप से आर्थोपोड प्रजाति के जीवों एवं कीटों को संक्रमित करता है।
- ऐसा देखा गया है कि कीटों (Insects) की लगभाग 60 प्रतिशत प्रजातियां इससे संक्रमित होती हैं। मच्छरों की भी कुछ प्रजातियां इससे संक्रमित होती है लेकिन इसमें एडीज एजिप्टी शामिल नहीं था।
- वोल्वाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित मच्छरों को किसी क्षेत्र में छोड़ा जाता है तो वे अन्य स्थानीय जंगली मच्छरों के साथ संकरण (Interbreeding) करते हैं और अधिकांश मच्छरों की प्रजातियां वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित होने लगती हैं। ऐसे में जब यह मच्छर इंसानों को काटते हैं तो भी डेंगू नहीं होता है।
- यदि यह संक्रमित मच्छर किसी ऐसे व्यक्ति को भी काटते हैं जो डेंगू से संक्रमित हैं तो डेंगू वायरस खून के माध्यम से मच्छर में तो चला जायेगा लेकिन वह सक्रीय नहीं रहेगा जिससे वह मच्छर यदि किसी दूसरे व्यक्ति को काटेगा तो भी डेंगू नहीं होगा।
- इंडोनेशिया के योग्याकार्ता (Yogyakarta) शहर को 24 कलस्टर में बांटकर प्रयोग किया गया। यहां 27 माह के आंकड़ों से पता चला है कि डेंगू के मामलों में 77 प्रतिशत गिरावट देखी गई है।
- इस प्रयोग से न सिर्फ डेंगू बीमारी पर नियंत्रण रखने का रास्ता सफ हो गया है बल्कि अपने वाले समय में मच्दरों से फैलने वाली अन्य बीमारियों पर भी नियंत्रण आसान होगा।
अवाक्स सिस्टम चर्चा में क्यों
- रडार (RADAR) रेडियो डिटेक्शन ऐण्ड रेंजिंग (Radio Detection and Ranging) का संक्षिप्त रूप है। रडार वस्तुओं का पता लगाने वाली एक प्रणाली है जो माइक्रोवेव (सूक्ष्मतरंगो) तथा रेडियों तरंगों का उपयोग करती है।
- इसकी सहायता से गतिमान वस्तुओं जैसे वायुमान, जलयान या किसी दूसरे चीज की दूरी, ऊँचाई, दिशा, चाल आदि का पता दूर से ही लगाया जा सकता है।
- रडार का आविष्कार टेलर व लियो यंग (Teller and Liyo Ying - USA) द्वारा 1922 में किया गया था लेकिन यह चर्चा में उस समय आया जब 1940 में इसका प्रयोग अमेरिकी नौसेना ने किया।
- रडार क्योंकि एक सिस्टम है जिसमें कई घटक शामिल होते है। इसके प्रमुख घटक मैग्नेट्रोन, ट्रांसमीटर, रिसीवर और एक स्क्रीन होता है।
- मैग्नेट्रोन रेडियों तरंगों को उत्पन्न करता है जो एक निश्चित समय अंतराल पर विभिन्न दिशाओं में एक एंटीना के माध्यम से इन तरंगों को भेजता है।
- भेजी जा रही तरंगों से यदि कोई वस्तु टकराती है तो यह तरंगें रिसीवर पहुँचती हैं और उससे संबंधित वस्तु के विषय में पता चलता है। रेडियो तरंगों की गति लगभग तीन लाख किमी प्रति सेकेण्ड होती है इसलिए रडार इन तरंगों का प्रयोग करके आसानी से किसी भी वस्तु का पता लगा लेता है।
- ग्रिड मैप के साथ स्क्रीन पर एक रडार लक्ष्य के रूप में प्रदर्शित करता है और उसकी गति और दिशा से सूचित करता रहता है।
- यह रडार दिन, रात यहां तक की खराब मौसम में भी बादलों के पार देखने में सक्षम होते हैं।
- खराब मौसम में भी वाणिज्यिक उड़ाने इसलिए संभव हो पाती है क्योंकि एयर ट्रैफिक कंट्रोलर्स ट्रांसपोंडर्स एवं रडार पर निर्भर होते है।
- रडार 199 मील दूर किसी वस्तु का पता लगाकर सूचित करने में संभव होते हैं।
- लक्ष्य का पता लगाने के लिए एंटेना को घुमाते रहने या आगे पीछे किया जाता है। जब एंटेना लक्ष्य की दिशा में होता है तब लक्ष्य का प्रतिरूप मॉनीटर पर प्रकट होता है। इस प्रतिरूप को पिप (Pip) कहते है।
- जमीन आधारित रडार मुख्य रूप से पृथ्वी की वक्रता या पर्वतीय अवरोधों के कारण हर स्थान पर अपनी तरंगें नहीं पहुँचा पाते है, इसलिए विमान पर भी रडार लगाये जाते हैं। यह विमान आधारित रडार 360 डिग्री कवरेज प्रदान करने के साथ-साथ प्राकृतिक अवरोंधों (पर्वतों) के ऊपर से कार्य करते हैं और निगरानी करते हैं। इन्हें एयरबोर्न वॉर्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AWACS) के रूप में जाना जाता है।
- अवाक्स भी दरअसल एक रडार प्रणाली है जो हवाई जहाज या लडाकू विमान के ऊपर लगायी जाती है।
- रंडार के उपयोग
- हवाई यातायात नियंत्रण
- एंटी मिसाइल सिस्टम
- वायु रक्षा प्रणाली
- मौसम की अविष्यवाणी
- अवाक्स का प्रयोग सैन्य दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है। इनका प्रयोग सामान्यतः उन जगहों पर किया जाता है जहां ग्राउंड सर्विलांस संभव नहीं होता है।
- यह आधुनिक युद्धों के दौरान जमीन और हवा में सर्विलांस सिस्टम के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करता है। इसकी मदद से हवाई हमले किये जाते हैं और हमलों को रोकने की कार्रवाई की जाती है।
- भारतीय वायुसेना में पहले से ही तीन इजराइली फाल्कन अवाक्स हैं जिन्हें वर्ष 2009 से 2011 के बीच शामिल किया गया था।
- भारत के पास जो जीन फाल्कन अवॉक्स हैं उन्हें IL76 एयरक्राफ्रट पर लगाया गया है जो इजराइल द्वारा बनाया जाता है। यह 360 डिग्री रोटेट हो सकते हैं।
- भारत में DRDO द्वारा विकसित दो अन्य अवाक्स सिस्टम भी है जिनका नाम नेत्र (Netra) है। यह 240 डिग्री रोटेट और निगरानी करने में सक्षम है। इसे भारत में विकसित एयरक्राफ्रट पर लगाया गया है।
- इस तरह भारत के पास सिर्फ 5 अवाक्स सिस्टम हैं।
- इस समय भारत का चीन के साथ सीमा तनाव चल रहा है जिसके पास 28 से 30 अवाक्स सिस्टम है और नयी पीढ़ी के भी है।
- दूसरी तरफ पाकिस्तान के संदर्भ में यह सूचना है कि उसके पास भी 7-8 अवाक्स सिस्टम हैं जो चीन और स्वीड़न से खरीदे गये हैं।
- भारत के रक्षा विश्लेषकों का हमेशा से मानना रहा है कि भारतीय सेना को दो तरफ हमले के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि बड़ी संभावना है कि भारत को एक साथ दो मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पडे।
- पाकिस्तान के पास चीन से हासिल कराकोरम ईगल जेडडीके-03 सबसे नया है।
- कुछ रिपोर्टर्स का यह भी कहना है कि पाकिस्तान तीन और ऐसे प्लेटफॉर्म हासिल करने की तैयारी कर रहा है।
- दो और फाल्कन अवाक्स के लिए रूस और इजराइल के साथ त्रिपक्षीय सौदा हुआ था जो कीमत को लेकर लंबे समय से लटका हुआ था।
- कुछ रिपोर्टर्स का कहना है कि रुस ने IL-76 की कीमत बढ़ा दी थी जो सरकार देना नहीं चाहती थी।
- हाल ही में सरकार ने दो और अवाक्स सिस्टम खरीदने की अनुमति दे दी है जिस पर लगभग 2 बिलियन डॉलर खर्च होगा। इसमें से एक बिलियन अवाक्स के लिए है तथा एक बिलियन उसके प्लेटफॉर्म के लिए है।
- इस प्रस्ताव को CCS अर्थात कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी को भेज दिया गया है जिसे कुछ दिन में पूर्ण अनुमति मिल जायेगी।
- यदि इसे अभी पूर्ण अनुमति मिल भी जाती है तो भी इसकी डिलीवरी होने में लगभग 2 से 3 साल का समय लगेगा।
- कुछ लोग इसे चीन के साथ तनाव से जोड़कर देख रहे हैं जबकि भारत और इजराइल के बीच देा अरब डॉलर का रक्षा सौदा पहले से है और भारत इन्हें खरीदने में जितना लेट करता कीमत उतनी ही बढ़ती जा रही थी ।
- कुछ समीक्षकों का कहना है कि भारतीय ब्यूरोक्रेसी ने भारत-चीन तनाव के बीच सुस्तता छोड़ा है और कुछ नहीं।
- कुछ समीक्षक यह भी कहते हैं कि इजराइल-चीन के संबंध भी बहुत अच्छे हैं और इजराइल, चीन केा भी अपना अवाक्स सिस्टम बेचना चाहता है लेकिन अमेरिका के दबाव के कारण वह ऐसा नहीं कर पा रहा है।
- भारतीय सेना के लंबे समय से आधुनिकीकरण की बात उठती रही है लेकिन रफ्रतार बहुत धीमी है। भारत को अवाक्स के साथ-साथ उन सभी रक्षा सौदों एवं प्रस्तावों पर विचार करना होगा जो समय- समय पर उसके सामने लाये गये है।
- चीन की आक्रामकता बढ़ रही है, उसका रक्षा बजट पहले से ही बहुत बड़ा है और उसे बढ़ा भी रहा है, रक्षा उपकरण निर्माण का उद्योग भी चीन में विकसित हो चुका है, इन सब कारणों से भारत को भी अपने सेना के आधुनिकीकरण की गति बढ़ानी होगी जिससे पूर्व- पश्चिम एवं दक्षिण तीन क्षेत्रें में भारत हर चुनौती का हर परिस्थिति में उचित जवाब दे सके।